माँग का सिद्धांत| Theory of demand

 माँग से क्या अभिप्राय है ?

माँग से अभिप्राय एक वस्तु की उन विभिन्न संभव मात्राओं से है जो कोई उपभोक्ता उस वस्तु की विभिन्न संभव कीमतों पर खरीदने के लिए तैयार है।

माँगी गई मात्रा से क्या अभिप्राय है ?

माँगी गई मात्रा से अभिप्राय उस विशेष मात्रा से हैं जो वस्तु की एक विशिष्ट कीमत पर खरीदी जाती है।

  माँग अनुसूची से क्या अभिप्राय है ?

माँग अनुसूची वह तालिका है जो किसी वस्तु की विभिन्न कीमतों पर खरीदी गई उस वस्तु की विभिन्न मात्रा को प्रकट करती है।

         माँग अनुसूची कितने प्रकार की होती ?

i) व्यक्तिगत माँग अनुसूची

ii) बाजार माँग अनुसूची


       व्यक्तिगत माँग अनुसूची

व्यक्तिगत माँग अनुसूची से अभिप्राय बाजार में एक व्यक्तिगत उपभोक्ता की माँग अनुसूची से है ।




बाजार माँग अनुसूची

वह तालिका है जो एक वस्तु की उन विभिन्न मात्राओं को प्रकट करती है जिन्हें बाजार में सभी क्रेता एक निश्चित समय पर वस्तु की विभिन्न संभव कीमतों पर खरीदने के लिए तैयार होते हैं।




 माँग वक्र से क्या अभिप्राय है ?

माँग वक्र माँग अनुसूची का रेखाचित्रीय प्रस्तुतीकरण है जो किसी वस्तु की विभिन्न संभव कीमतों तथा माँगी गई मात्राओं के बीच के संबंध को प्रकट करता है।

  माँग वक्र कितने प्रकार के होते है ?

i) व्यक्तिगत माँग वक्र 

ii) बाजार माँग वक्र


   व्यक्तिगत माँग वक्र 

व्यक्तिगत माँग वक्र वह वक्र है जो एक वस्तु कि उन विभिन्न मात्राओं को दिखाता है जो एक विशेष क्रेता एक निश्चित समय पर वस्तु की विभिन्न संभव कीमतों पर खरीदने के लिए तैयार होता है।


बाजार माँग वक्र

बाजार माँग वक्र वह वक्र है जो एक वस्तु की उन विभिन्न मात्रा को दिखाता है जो बाजार में सभी क्रेता एक निश्चित समय पर वस्तु की विभिन्न संभव कीमतों पर खरीदने के लिए तैयार होते है।


     माँग फलन या माँग के निर्धारक तत्त्व

माँग फलन किसी वस्तु की मांग तथा उसके विभिन्न निर्धारक तत्व के बीच संबंध को प्रकट करता है। इससे प्रकट होता  है की किसी वस्तु की माँग उस वस्तु की अपनी या उपभोक्ता की आय या अन्य निर्धारक  तत्त्वों 

 माँग फलन कितने प्रकार के होते हैं ?

  माँग फलन दो प्रकार के होते हैं।

i) व्यक्तिगत माँग फलन 

ii) बाजार माँग फलन


       व्यक्तिगत माँग फलन 

व्यक्तिगत माँग फलन दर्शाता है कि बाजार में एक व्यक्तिगत उपभोक्ता के द्वारा की गई माँग इसके विभिन्न निर्धारक तत्त्वों से किस प्रकार संबंधित है। इसे नियम लिखित रूप से व्यक्त किया जाता है:

i) वस्तु की अपनी कीमत : अन्य बातें समान रहने पर वस्तु की अपनी कीमत बढ़ने पर वस्तु की माँग घट जाती है तथा वस्तु की अपनी कीमत घटने पर वस्तु की माँग बढ़ती है। किसी वस्तु की अपनी कीमत तथा उसकी माँग के बीच विपरीत संबंध को मांग का नियम कहा जाता है।

ii) संबंधित वस्तुओं की कीमत : एक वस्तु की माँग पर संबंधित वस्तुओं की कीमत में होने वाला परिवर्तन काफी प्रभाव पड़ता है। संबंधित वस्तुएँ दो प्रकार की होती है:

i) प्रतिस्थापन वस्तुएँ : प्रतिस्थापन वस्तुएँ वे वस्तुएँ हैं जिनका एक दूसरे के स्थान पर प्रयोग किया जा सकता है।


ii) पूरक वस्तुएँ : पूरक वस्तुएँ वे वस्तुएँ हैं जो मिलकर एक दूसरे की मांग को पूरा करती है और इसलिए इनकी माँग एक -साथ की जाती है। 

iii) उपभोक्ता की आय : उपभोक्ता की आय में होने वाला परिवर्तन भी विभिन्न वस्तुओं की माँग को प्रभावित करता है। उपभोक्ता कि आय बढ़ने पर सामान्य वस्तुओं की माँग बढ़ती है एवं इसके विपरीत भी इसके विपरीत उपभोक्ता की आय बढ़ने पर घटिया वस्तुओं की माँग कम हो जाती है।

iv) रूचि तथा प्राथमिकता : वस्तुओं तथा सेवाओं की माँग व्यक्ति की रुचिओ तथा प्राथमिकताओं पर भी निर्भर करती है। अन्य बातें समान रहने पर उपभोक्ताओं कि जिन वस्तुओं के लिए रुचि बढ़ जाती है तो उसकी मांग बढ़ जाती है इसके विपरीत यदि किसी वस्तु के लिए रुचि नहीं है तो उसकी माँग घट जाती है। 

v) संभावनाएँ : यदि उपभोक्ता को यह संभावना हो कि निकट भविष्य में वस्तु की उपलब्धता में महत्वपूर्ण परिवर्तन होगा तो वह वस्तु की वर्तमान माँग में परिवर्तन करने का निर्णय ले सकता है।

   बाजार माँग फलन

यह किसी वस्तु की बाजार माँग तथा उसके विभिन्न निर्धारक तत्त्वों के बीच संबंध को प्रकट करता है।

i) जनसंख्या का आकार : जनसंख्या के बढ़ने से माँग वृद्धि हो जाती है तथा जनसंख्या के कम होने से माँग कम हो जाती है।

ii) आय का वितरण : बाजार माँग पर समाज में आय के वितरण का भी प्रभाव पड़ता है। यदि आय का वितरण समान रूप से होता है तो माँग अधिक होगी। यदि आय का वितरण आसमान है तो माँग कम होगी।

माँग का नियम

माँग का नियम यह बतलाता है कि अन्य बातें समान रहने पर, किसी वस्तु की अपनी कीमत कम होने पर उसकी माँग की गई मात्रा में वृद्धि होती है एवं इसके विपरीत भी ।

माँग की नियम की मान्यताएँ

i) उपभोक्ताओं की रूचि तथा प्राथमिकताएँ स्थिर रहती हैं।

ii) क्रेताओं की आय में कोई परिवर्तन नहीं होता।

iii) संबंधित वस्तुओं की कीमतों में परिवर्तन नहीं होता है।


माँग के नियम के अपवाद

i) गिफ्फन वस्तुएँ = यह वे वस्तु होती है जो कीमत में वृद्धि होने पर माँग में वृद्धि होती है । इसके प्तयक्ष कीमत में कमी होने पर माँग में कमी होती है। जैसे - मोटा अनाज

ii) अनिवार्य वस्तुएँ= जैसे - चावल, दाल, तेल

iii) सामाजिक सामान्य वस्तुएँ = जैसे - सोना, चाँदी


  माँग वक्र ढलान ऋणात्मक क्यों होता है ?

माँग वक्र के ऋणात्मक ढलान से प्रकट होता है कि कीमत कम होने पर अधिक वस्तुएँ खरीदी जाती है। इसलिए किसी वस्तु की अपनी कीमत तथा इसकी मां की गई मात्रा के बीच विपरीत संबंध होता है।

माँग वक्र ऋणात्मक ढलान होने के कारण निम्नलिखित हैं:

i) ह्रासमान सीमांत उपयोगिता का नियम 

ii) प्रतिस्थापन प्रभाव

iii) उपभोक्ता समूह का आकार

iv) विभिन्न उपयोग

      ह्रासमान सीमांत उपयोगिता का नियम 

इस नियम के अनुसार जैसे -जसे किसी वस्तु के उपभोग में वृद्धि होती है तो प्रत्येक अगली इकाई  से मिलने वाली सीमांत उपयोगिता घटती जाती है। 

  प्रतिस्थापन प्रभाव

प्रतिस्थापन प्रभाव से अभिप्राय है कि जब एक वस्तु अपनी स्थानापन्न वस्तु की तुलना में सस्ती हो जाती तो दूसरी वस्तु की प्रतिस्थापन किया जाता है।

  उपभोक्ता समूह का आकार

जब किसी वस्तु की कीमत कम हो जाती है तब कई अधिक क्रेता जो पहले  उस वस्तु को नहीं खरीद रहे थे अब उससे खरीदने में रूचि देखने को मिलेगी। इसके कारण वस्तु की माँग में वृद्धि होगी 

 विभिन्न उपयोग

एक वस्तु के वैकल्पिक उपयोग होते हैं। जैसे दूध का प्रयोग दही, पनीर तथा मक्खन बनाने में किया जा सकता है। यदि दूध की कीमत कम होती है तो इसका विभिन्न उपयोग में इस्तेमाल होगा। इसके कारण दूध की माँग बढ़ेगी।